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Dooars Day, Ours Day.

14 जनवरी ‘डुआर्स दिवस’: डुआर्स के लिए एक अलग आसमान :- रिमझिम गुप्ता

 

14 जनवरी ‘डुआर्स दिवस’: डुआर्स के लिए एक अलग आसमान

                                                  :- रिमझिम गुप्ता 

उत्तर की खिड़की से आती ठंडी हवा, घास पर ओस की बूंदें और त्योहारों का मौसम समाप्त हो गया है | लेकिन अब डुआर्स एक अलग तरह के उत्सव में डूबने जा रहा है | यह क्षेत्र जलपाईगुड़ी जिला स्थित ओदलाबाडी से कुमारग्राम तक, तीस्ता से संकोश नदी तक फैला एवं 160 किलोमीटर लम्बा यह क्षेत्र आज ‘डुआर्स’ के नाम से जाना जाता है | यह क्षेत्र मेच,रावा, टोटो, लिम्बू, राजबंशी, कोच, उरांव, संथाल, मुंडा, बिहारी, बंगाली, नेपाली इत्यादि कई अन्य जातियों-जनजातियों और भाषा समूहों का निवास स्थान है | भव्य हिंदू मंदिर, मस्जिद, सजे  हुए चर्च, नीले आकाश को स्पर्श करने वाली बौद्ध पेगोडा शिखर एवं गुरूद्वारे डुआर्स की विविधता का प्रतीक है |

यहाँ लगभग 145 प्रकार की भाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती है | भारत के किसी भी क्षेत्र के आकर की तुलना में सबसे अधिक जातिय विविधता वाले लोग इस डुआर्स में रहते है | अतीत में सभी ने साथ मिलकर एक-दुसरे के सुख-दुःख साँझा किए हैं | परन्तु विभिन्न कारणों से उस प्राचीन परंपरा को चोट पहुँची है | 1986 से डुआर्स को गोरखालैंड में शामिल करने की मांग को लेकर एक नया आंदोलन शुरू हुआ, जो 2008 तक तीव्र हो गई | जिसमें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, आदिवासी विकास परिषद्, कामतापुर पीपल्स पार्टी एवं अन्य संगठनों द्वारा बंद,परिवहन हड़ताल,सड़क अवरोध ने सार्वजनिक जीवन को बाधित कर दिया | शांता-श्यामल जनपद में पिछले दिनों हत्या और आगजनी की घटनाएं भी हुई थी| परिणामस्वरूप विविध भाषा-समुदायों के लोगों के बीच कुछ हद तक अविश्वास का माहौल बन गया | शिक्षा, संपर्क एवं स्वास्थ्य सेवाओं में पहले से ही पिछड़े डुआर्स के लिए यह स्थिति और भी कठिनाई भरी हो गई |

राजनीतिक निष्क्रियता और सामाजिक पहल– तत्कालीन स्थिति में विभिन्न राजनीतिक दलों की निष्क्रियता एवं कोई ठोस कदम नहीं उठाने व समस्या का समाधान करने की कोई पहल नज़र नहीं आ रही थी, कुछ लोगों के लिए क्षेत्र की शांति एवं विकास से अधिक वोट की राजनीति महत्वपूर्ण बन गई | ऐसे समय में, पत्रकारिता से जुड़े कुछ लोग आगे आते हैं | उनके साथ-साथ कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं, क्लब और सामाजिक संगठन भी शामिल हुए | 18 नवंबर 2010 को धूपगुड़ी ब्लॉक के बानरहाट के एक बैठक में आदिवासी विकास परिषद्, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, कामतापुर पीपल्स पार्टी और डुआर्स मिल्लत इस्लामिया जैसे विरोधी विचारधाराओं वाले संगठनों को एक ही मंच पर ला कर चर्चा की गई | यह एक असाधारण प्रयास था | शासन-प्रशासन जो, अब तक ऐसा करने में विफल रहे उसे बिना ढाल-तलवार के चंद बुध्दिजीविओं एवं सामाजिक संगठनों ने असंभव को भी संभव कर दिखाया | इस बैठक में कहा गया कि विभिन्न भाषा-समुदायों और जन संगठनो की लोकतान्त्रिक मांगे पूरी हो सकती है,लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उनके आंदोलन के तरीके से आम जनता के लोकतान्त्रिक अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए | कामतापुर पृथक राज्य, गोरखालैंड इत्यादि इन विभिन्न मांगों को पूरा करने का दायित्व केंद्र या राज्य सरकारों का है, यह दिल्ली या कलकत्ता में बैठें अधिकारिओं का विषय है | गंगा या यमुना के पार के नीति-निर्माता क्या निर्णय लेंगे? हम डुआर्स वासी एक-दुसरे से क्यों आपस में टकराए व मनमुटाव करें | इस पर हमें विचार करना होगा | बैठक की अध्यक्षता अस्सी चुई-चुई चाय श्रमिक संगठन के आयोजक चित डे-से ने की थी तथा यह निर्णय लिया गया कि अगले वर्ष यानि 14 जनवरी 2011 को ‘डुआर्स दिवस’ मनाया जाएगा | जिसका लक्ष्य शांति, सद्भाव व् प्रगति होगा |

14 जनवरी 1864 को ब्रिटिश सार्जेंट ‘रेनी’ ने तत्काल लार्ड एलिसन को एक पत्र में डुआर्स क्षेत्र के भौगोलिक महत्व, प्राकृतिक संसाधनों और वाणिज्यिक क्षमता के बारे में जानकारी दी | तब से ब्रिटिश सरकार इस क्षेत्र में अपना प्रभाव फैलाने के लिए सक्रिय हो गई | केवल इन कम आबादी वाले क्षेत्रोंमें प्रभाव बढ़ाने का उद्देश्य पड़ोसी देश भूटान, नेपाल, तिब्बत एवं चीन के विशाल क्षेत्रों पर ब्रिटिश सैन्य नियंत्रण बढ़ाना था | फिर जंगल को काटकर चाय बागान लगाने की प्रक्रिया का आरम्भ एवं रेलवे लाइन का निर्माण शुरू होता है | इसलिए इस दिन को चुना गया ‘डुआर्स दिवस’ के रूप में एवं यहाँ के लोग चाहते है कि जितिया, करम, फूलपाती, ईद, होली की भांति इस ‘डुआर्स दिवस’ को भी एक त्योहार की तरह मनाए जो, किसी विशेष धर्म या समुदाय से सम्बंधित ना हो |

‘डुआर्स दिवस’ की प्रतीकात्मकता एवं महत्व :-डुआर्स शब्द अंग्रेजी के ‘डोर’ और बांग्ला के ‘द्वार’ से उत्पन्न हुआ है | इसके प्रतीक के रूप में एक ऐसा दरवाजा जो, उत्तर की ओर खुला है एवं पहाड़ों के बीच से उगते सूरज को दर्शाया गया है | यह प्रतीक उज्ज्वल भविष्य की ओर डुआर्स की यात्रा का प्रतीक है |


इस दिन के लिए डुआर्स से बाहर रह रहे लोगों से अपने घर लौटने का आह्वाहन किया गया | 14 जनवरी की शाम को डुआर्स के सभी मंदिरों, मस्जिदों, चर्च, गुरूद्वारे और घरों में दीप, मोमबतियां और रौशनी जलाई जाएँगी | इसे ‘प्रकाश उत्सव’ के नाम से जाना जाएगा जो,किसी विशेष धर्म या समुदाय से नहीं जुड़ा होगा |

लोक संस्कृति एवं सामाजिक सुधर की पहल :- डुआर्स लोककथाओं की खान है | मेच, रावा, कोच, संथाल, उरांव, मुंडा एवं कई जनजातियों की सांस्कृतिक धरोहर यहाँ की पहचान है | आज आधुनिकता एवं बॉलीवुड कल्चर के प्रभाव से यह संस्कृति लुप्त होती जा रही है |‘डुआर्स दिवस’ का उदेश्य इस लोक संस्कृति को पुनर्जीवित करना है |

उन्नति की ओर एक नई पहल :-डुआर्स के आयोजकों का मानना है कि इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करना और सामाजिक सुधार करना अनिवार्य है | अतः इस दिन को केवल उत्सव के रूप में नहीं, बल्कि क्षेत्र के विकास के लिए एक आंदोलन के रूप में मनाया जाएगा|

उत्साह और उम्मीद :- रविंद्रनाथ टैगोर का मानना था कि त्योहार धार्मिक बाधाओं को तोड़कर प्रकृति-केन्द्रित एवं सर्वभौमिक हो | इसलिए उन्होंने बसंत उत्सव, पौष मेला इत्यादि त्योहारों को लोकप्रिय बनाया | उद्यमी निःसंकोच स्वीकार करते है कि ‘डुआर्स दिवस’ मनाने का विचार मन में आने के पीछे रविंद्रनाथ टैगोर का प्रभाव है | डुआर्स दिवस ने देश की सीमाओं को भी पर कर दिया है | अमेरिका, न्यूजीलैंड एवं अन्य देशों में बसे लोग इस प्रयास का समर्थन कर रहें हैं | सोशल मीडिया पर भी इसे व्यापक समर्थन मिल रहा है | डुआर्स दिवस के गेस्टबुक पर कई लोग अपनी राय एवं शुभकामनाएँ दे रहे हैं | प्रसिद्ध कवि डॉ अमित कुमार दे ने डुआर्स दिवस का थीम गीत लिखा है | कवि गौतमेंदू रॉय, काडिमन गोले, प्रशांत लोहार एवं अन्य लोगों ने मिलकर शब्दों और धुनों के साथ इस गीत को पूर्ण किया है | गीत है- ‘सारे द्वन्द-मतभेद भुलाकर / हम मिल सकते है / डुआर्स दिवस पर होंगे साक्षी . . . |

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